पंडरिया सीट को लेकर प्रत्याशी चयन मे भूल कर रही भाजपा…कही चुनावी सेटिंग तो नही ?
कवर्धा। छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव को लेकर सभी पार्टियां अपने उम्मीदवारों का चयन बार बार मंथन करने बाद जारी कर रहे हैं। इसी बीच 2 अक्टूबर को कुछ समाचार चैनलों और सोशल मीडिया में प्रसारित हो रहे भारतीय जनता पार्टी के विधानसभा प्रत्याशियों की सूची को लेकर प्रदेश में चारो ओर चर्चाएँ गरम है। यदि यह सूची सही है तो भाजपा आखिर 2018 के चुनाव में की गई गलती को आखिर दोबारा क्यों दोहरा रही है? विजयी प्रत्याशी को दरकिनार करते हुए आखिर उम्रदराज व्यक्ति के नाम पर पार्टी क्यों दांव खेल रही है? इसके पीछे की राजनीतिक समीकरण आखिर क्या है? सर्वे के आधार पर जिस लोकप्रिय एवं विजयी प्रत्याशी का नाम सबसे ऊपर था उसके परे पार्टी ऐसा फैसला आखिर क्यों ले रही है? ऐसे ही कई सवाल जनता और कार्यकर्ताओं के मन में सैलाब की तरह उमड़ रहा है।
जनता की भावना से खिलवाड़
पंडरिया विधानसभा में आखिर भारतीय जनता पार्टी जनता की भावना के साथ क्यों खिलवाड़ कर रही है? भाजपा के सर्वे से लेकर लगभग अधिकांश सर्वे में क्षेत्र से विजयी प्रत्याशी के रूप में भावना बोहरा का नाम सबसे शीर्ष पर है। सभी कार्यकर्ताओं को भी भरोसा है की उन्हें ही यहां से टिकट मिलेगी और वे बड़ी जीत पार्टी को दिला सकती हैं। विधानसभा की जनता ने भी विगत वर्षों में भावना बोहरा द्वारा किये गए जनसेवा के कार्यों को परखा है देखा है और उन्हें एक विधायक प्रत्याशी के रूप में वे देख रहें हैं। पार्टी द्वारा मिला दायित्व हो चाहे समाज सेविका के रूप में हो उनके द्वारा पंडरिया विधानसभा के अलावा पूरे कवर्धा जिले के हर क्षेत्र में कार्य की बात हो भावना बोहरा ने लगातार जनता के बीच रहकर उनकी समस्याओं को सुना और उसके निराकरण के लिए आवाज उठाई। लेकिन जबसे सोशल मीडिया में टिकट वितरण की दूसरी सूची प्रसारित हो रही है तबसे कार्यकर्ताओं का मनोबल टूट रहा है और यह खामियाजा पार्टी को पंडरिया विधानसभा में हार के रूप देखने को मिल सकता है।
आखिर भाजपा पंडरिया में कमजोर प्रत्याशी को क्यों टिकट दे रही है, इसके पीछे की राजनीतिक समीकरण क्या है?
पंडरिया विधानसभा में वर्तमान स्थिति में यदि भाजपा जातिगत समीकरण देखकर प्रत्याशी की घोषणा करती है तो स्पष्ट रूप से उन्हें हार का सामना करना पड़ सकता है। पहले तो कार्यकर्ताओं की नाराजगी और निष्क्रिय प्रत्याशी को मैदान में उतारना यह चुनाव की दृष्टि से किसी भी प्रकार से पार्टी की हार का प्रमुख कारण बन सकता है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि आखिर भाजपा पंडरिया से एक कमजोर प्रत्याशी को टिकट क्यों देना चाह रहा है? इसके पीछे का आखिर राजनीतिक समीकरण क्या हो सकता है? कोई भी पार्टी जितने के लिए चुनावी मैदान में उतरती है, जनता की राय और कार्यकर्ताओं के सुझाव से ऐसे व्यक्ति को चुनती है जो उस क्षेत्र में जनता के बीच अपनी मजबूत पकड़ रखता है परन्तु पंडरिया विधानसभा में ऐसा क्या राजनीतिक समीकरण देख रही है भाजपा जो एक कमजोर प्रत्याशी के ऊपर दांव खेल रही है यह सबके मन में एक बड़ा सवाल है।
2018 चुनाव की गलती क्यों दोहरा रही भाजपा?
2018 में भाजपा की बड़ी हार होने के बाद भी आखिर ऐसे प्रत्याशियों के नाम आना जो उस क्षेत्र में सक्रिय नहीं है जनता के बीच उनकी पकड़ कमजोर हैं, कार्यकर्ताओं में उनसे नाराजगी है उन्हें टिकट देने के लिए क्यों आतुर हो रही है। वर्तमान समय में पंडरिया विधानसभा से भावना बोहरा का नाम लगभग तय माना जा रहा है लेकिन सोशल मीडिया व कुछ निजी समाचार चैनलों में 2 अक्टूबर से प्रसारित हो रही भाजपा की दूसरी सूची में प्रत्याशियों के नाम को देखकर जनता व पार्टी के कार्यकर्ता खुद हैरान है की 2018 की गलती को भाजपा क्यों दोहरा रही है। विगत विधानसभा चुनाव में भी भाजपा ने अपने पुराने प्रत्याशियों को मैदान में उतारा था जिसका खामियाजा उन्होंने 14 सीटों में सिमटकर भुगतना पड़ा दो उपचुनाव में भी भाजपा को करारी हार मिली, बावजूद इसके भी फिर से पुराने प्रत्याशियों को मैदान में उतारने का निर्णय चुनावी दृष्टि से गलत साबित हो सकता है।
युवा एवं महिला प्रत्याशियों को अवसर देना भाजपा की स्थिति को मजबूत कर सकता है
वर्तमान चुनावी दृष्टिकोण को देखते हुए कांग्रेस पार्टी की स्थिति को मजबूत माना जा रहा है, लेकिन कुछ ऐसे विधानसभा है जहाँ पर भाजपा की महिला और युवा नेता जनता के बीच अपनी एक मजबूत पकड़ रखती हैं। पंडरिया में भी इस समीकरण से पार्टी को देखना होगा न की पुराने प्रत्याशी को मैदान में उतारकर सिट गंवाने की। सोशल मीडिया में प्रसारित सूची के अनुसार भाजपा बिशेषर पटेल को यहां से प्रत्याशी के रूप में चुनावी मैदान में उतार रही है, यह खबर लगते ही कार्यकर्ताओं के बीच नाराजगी साफ़ दिखाई दे रही है। जिस व्यक्ति का कोई जनाधार नहीं है, क्षेत्र में सक्रियता नहीं के बराबर है, जिनकी कार्यशैली देखकर कार्यकर्ताओं को सांप सूंघ जाता है ऐसे प्रत्याशी के पक्ष में आखिर कौन प्रचार करेगा और वो व्यक्ति चुनाव कैसे जीत पायेगा यह भाजपा को जरुर सोचना चाहिए।
एक ओर भाजपा युवाओं को प्रोत्साहन और महिलाओं के सशक्तिकरण की बात करती है, महिलाओं के लिए नारी शक्ति वंदन अधिनियम का बखान कर रही है वहीं विधानसभा चुनाव में महिलाओं एवं युवा तथा नए प्रत्याशियों को दरकिनार करना पार्टी के लिए हानिकारक सिद्ध हो सकता है। नारी शक्ति की बात कहने वाली भाजपा की पहली सूची में भी गिनी-चुनी महिला प्रत्याशियों को स्थान दिया गया है। पिछले चुनाव में हार के बाद भाजपा ने अच्छी मेहनत की, जनता के बीच फिर से अपना विश्वास पाने के लिए कड़ी मेहनत कर रही है लेकिन ऐसे हारे हुए प्रत्याशियों को टिकट देकर भाजपा अपने कार्यकर्ताओं को निराश कर रही है और उनकी मेहनत पर पानी फेरने का काम कर रही है। यदि सोशल मीडिया और समाचार चैनलों में प्रसारित हो रहे प्रत्याशियों के नाम पर भाजपा मुहर लगाने का विचार कर रही है तो 2018 से भी ख़राब स्थिति भाजपा के प्रति देखने को मिल सकती है। शीर्ष नेतृत्व से लेकर प्रदेश प्रभारी एवं पदाधिकारियों को भी इन राजनीतिक समीकरणों को बहुत ही गंभीरता से लेने की आवश्यकता है और सर्वे के आधार पर विजयी प्रत्याशियों को टिकट देना पार्टी हित में हो सकता है।